Ghazals are like special songs expressing emotions in the most heartfelt manner. These beautiful poems have been loved for a long time, making poetry fans happy. If you are searching for 2 line ghazal in Hindi you have come to the right place. In this post we will talk about 2 lines ghazal in hindi and Best ghazal in hindi by famous poets like, John Elia, Mirza ghalib, Faiz ahmad faiz and more.
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Toggle2 Line ghazal In Hindi
आज लब गहर फशों आप ने वा नहीं किया
तज़्किरा-ए खुजस्ता-ए आब-ओ-हवा नहीं किया
कैसे कहें के तुझ को भी हम से है वास्ता कोई
तू ने तो हम से आज तक कोई गिला नहीं किया
जाने तेरी नहीं के साथ कितने ही जब्र
थे के थे मैं ने तेरे लहज़े में तेरा कहा नहीं किया
मुझ को ये होश ही न था तो मेरे बाजुओं में है
यानी तुझे अभी तक मैं ने रहा नहीं किया
तू भी किसी के बाब में अहद-शिकं हो ग़ालिबा मैं
ने भी एक शख़्स का क़र्ज़ अदा नहीं किया
हाँ वो निगाह-ए नाज़ भी अब नहीं माजरा तलब
हम ने भी अब कि फ़स्ल में शोर बिपा नहीं किया
हिजाब बन के वह मेरी नज़र में रहता है
मुझसे पर्दा है मेरे ही घर में रहता है
कभी किसी का तजस्सुस कभी ख़ुद अपनी तलाश
अजीब दिल है हमेशा सफ़र में रहता है
जिसे ख़याल से छूते हुए भी डरता हूँ
एक ऐसा हुस्न भी मेरी नज़र में रहता है
जिसे किसी से कोई वास्ता नहीं होता
सुकून के साथ वही अपने घर में रहता है
जिस एक लम्हे से सदियाँ बदलती जाती हैं
वह एक लम्हा मुसलसल सफ़र में रहता है
तमाम शहर को है जिस पे नाज़ ऐ जौहर
एक ऐसा शख़्स हमारे नगर में रहता है
है वफ़ा तुझ में तो पाबंद वफ़ा हूँ मैं भी मुझ से
मिल बैठ मोहब्बत की फ़िज़ा हूँ मैं भी
जब भी आ जाए ख़याल उन को दिल मुज़्तर का
लब पे बे-साख़्ता आए वो दुआ हूँ मैं भी
हम सफ़र बन के मिले या बने रहबर अपना
कोई तो पूछे के मंज़िल का पता हूँ मैं भी
गूंज सी बन के फ़िज़ाओं में जो हो जाती है
गुम मुझ को लगता है के सहरा की सदा हूँ मैं भी
मैं ने चाहा है दिल-ओ-जान से सबिहा जिस
को वो कभी आए कहे तुझ पे फ़िदा हूँ मैं भी
कर्ब के शहर में रह कर नहीं देखा तो ने
क्या गुज़रती रही हम पर नहीं देखा तो ने
कांच का जिस्म लिए शहर में फिरने वाले
दस्त-ए हालात में पत्थर नहीं देखा तो ने
ऐ मुझे सब्र के आदाब सिखाने वाले जब वो
बिछड़ा था वो मंज़र नहीं देखा तो ने
बे-करां क्यों न लगें तुझ को ये जौहर तेरे
बात ये है के समंदर नहीं देखा तो ने
जाने वालों को सदाएं नहीं देता मैं भी तू भी
मुझ सा है के मुड़ कर नहीं देखा तो ने
तो ने देखा है मुकद्दर का सितारा खांवर पर
सितारे का मुकद्दर नहीं देखा तो ने
इश्क़ में गैरत जज़्बात ने रोने न दिया
वरना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया
आप कहते थे कि रोने से न बदलेंगे नसीब
उम्र भर आपकी इस बात ने रोने न दिया
रोने वालों से कहो उनका भी रोना रो लें
जिन को मजबूरई हालात ने रोने न दिया
तुझ से मिल कर हमें रोना था बहुत रोना था
तंगी-ए वक़्त मुलाक़ात ने रोने न दिया
एक दो रोज़ का सदमा हो तो रो लें फाक़िर
हम को हर रोज़ के सदमे ने रोने न दिया
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2 line Ghazal in Hindi By Famous Poets
2 line Ghazal in Hindi, written by famous poets, are powerful poems. They are like tiny gems in the world of poetry. These Ghazals talk about love, emotions, and life. In this phase, we will explore two line Ghazals in Hindi by famous poets including Mirza Ghalib, Faiz Ahmed Faiz, and more.
John Elia Ghazal
रात भर क्या होगा, अब देखा जाए तो क्या होगा,
कुछ नहीं भी नहीं, सब कुछ बेहतर होगा।
आंसुओं का असर होता है, ग़ज़ल की दास्ताँ में,
कोई खुद को रुलाए तो क्या होगा, क्या होगा।
किस ख़ुदा की मर्ज़ी है, कि ये इंसान बनाए,
एक दूसरे से प्यार करें, तो क्या होगा, क्या होगा।
हस्ती में ख़ुशबू के महल बनाए रखना,
फूल भी मुरझ जाएं तो क्या होगा, क्या होगा।
ये दुनिया है या जन्नत का नज़ारा,
किस क़दर मोहब्बत करें तो क्या होगा, क्या होगा।
Mirza Ghalib Ghazal
हुस्न-ए मह गरचे बह हंगाम-ए कमाल अच्छा है
इस से मेरा मह-ए ख़ुर्शीद-जमाल अच्छा है
उन के देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
देखिए पाते हैं आशिक़ बुतों से क्या फ़यज़
एक बरहमन ने कहा है कि यह साल अच्छा है
हम सुख़न तीशे ने फ़रहाद को शीरीन से किया
जिस तरह का कि किसी में हो कमाल अच्छा है
क़त्रा-ए दरिया में जो मिल जाए तो दरिया हो जाए
काम अच्छा है वो जिस का कि माइल अच्छा है
ख़िज़र सुल्ताँ को रखे ख़ालिक़-ए अकबर सर-सब्ज़
शाह के बाग़ में ये ताज़ा-निहाल अच्छा है
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के बहलाने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है
Ahmad Faraz Ghazal
सामने उस के कभी उस की स्ताईश नहीं की
दिल ने चाहा भी अगर होंटों ने ज़िंबिश नहीं की
अहल-महफ़िल पे कब अहवाल खुला है अपना
मैं भी खामोश रहा, उस ने भी पुरसिश नहीं की
जिस क़दर उस से तालुक़ था चले जाता है
उस का क्या रंज हो जिस की कभी ख्वाहिश नहीं की
ये भी क्या कम है के दोनों का भरम क़ाएम है
उस ने बख़्शिश नहीं की, हम ने गुज़ारिश नहीं की
एक तो हम को अदब आदाब ने प्यासा रखा
उस पे महफ़िल में सुराही ने भी गर्दिश नहीं की
हम के दुख ओढ़ के ख़लवत में पड़े रहते हैं
हम ने बाज़ार में ज़ख़्मों की नमाइश नहीं की
अए मिरे अब्र करम देख ये वीराना-ए जाँ
क्या किसी दश्त पे तू ने कभी बारिश नहीं की
कट मरे अपने क़बीले की हिफ़ाज़त के लिए
मक़तल शहर में ठहरे रहे जिंबिश नहीं की
वो हमें भूल गया हो तो अजब क्या है फ़िराक़
हम ने भी मेल मुलाकात की कोशिश नहीं की
Alama Muhammad Iqbal Ghazal
ज़माना आया है बे-हिजाबी का आम दीदार यार होगा
सुकूत था पर्दा-दार जिस का वो राज़ अब आश्कार होगा
गुज़र गया अब वो दौर साक़ी के छुप के पीते थे पीने वाले
बनेगा सारा जहां मै-ख़ाना हर कोई बादह-ख़्वार होगा
कभी जो आवारा-ए-जुनूं थे वो बस्तियों में आ बैठेंगे
बरहना पाई वही रहेगी मगर नया ख़ार-ज़ार होगा
सुना दिया गोश मुन्तज़िर को हिजाज़ की ख़ामोशी ने आख़िर
जो एहद-ए-सहराईयों से बाँधा गया था पर इस्तवार होगा
निकल के सहरा से जिस ने रोमा की सुल्तनत को उलट दिया था
सुना है ये क़ुद्सियों से मैं ने वो शेर फिर होशियार होगा
क्या मेरा तज़्क़रा जो साक़ी ने बादह-ख़्वारों की अंजुमन में
तू पीर मै-ख़ाना सुन के कहने लगा के मुंह फट है ख़ार होगा
दियार-ए-मग़्रेब के रहने वालो ख़ुदा की बस्ती दुकान नहीं है
ख़रा है जिसे तुम समझ रहे हो वो अब ज़र कम-अयार होगा
तुम्हारी तहज़ीब अपने ख़ंजर से आप ही खुदकशी करेगी
जो शाख़ नाज़ुक पे आशियाना बनेगा नापाएदार होगा
सफीना-ए-बर्ग-गुल बना लेगा क़ाफ़िला मौर नातवाँ का
हज़ार मौजों की हो कशाकश मगर ये दरिया से पार होगा
चमन में लाला दिखाता फिरता है दाग़ अपना कली-कली को
ये जानता है के इस दिखावे से दिल जलूं में शुमार होगा
जो एक था अए निगाह तो ने हज़ार कर के हमें दिखाया
यही अगर क़ैफ़ियत है तेरी तो फिर किसे इत्बार होगा
कहा जो क़मरी से मैं ने एक दिन यहाँ के आज़ाद पागल हैं
तो गुंचे कहने लगे हमारे चमन का ये राज़दार होगा
ख़ुदा के आशिक़ तो हैं हज़ारों बनों में फिरते हैं मारे मारे
मैं उस का बंदा बनूंगा जिस को
Ghazal by Mir Taqi Mir
हस्ती अपनी हबाब की सी है
यह नमाइश सराब की सी है
नाज़ुकी उस के लब की क्या कहें
पनखड़ी एक गुलाब की सी है
चश्म दिल खोल उस भी आलम पर
यां की अवकात ख्वाब की सी है
बार बार उस के दर पे जाता हूँ
हालत अब अज़्बत की सी है
नुक़्ता-ए-ख़ाल से तेरा इब्रू
बीत एक इंतिख़ाब की सी है
मैं जो बोला कहा कि यह आवाज़
उसी ख़ाना-ख़राब की सी है
आतिश-ए-ग़म में दिल भना शायद
देर से बू कबाब की सी है
देखिए अब्र की तरह अब के
मेरी चश्म पर आब की सी है
मीर अन नीम बाज़ आंखों में
सारी मस्ती शराब की सी है
Love 2 Line ghazal in Hindi
इस राहगुज़र में अपना कदम भी जुदा मिला
इतनी सुअबतों का हमें ये सिला मिला
एक वुस्आत ख़याल के लफ़्ज़ों में घर गई
लहजा कभी जो हम को करम आशना मिला
तारों को गर्दिशें मिलीं ज़र्रों को ताबिशें
अे राहनवर राह-ए-जुनूं तुझ को क्या मिला
हम से बढ़ी मसाफत दश्त-ए-वफ़ा के हम
ख़ुद ही भटक गए जो कभी रास्ता मिला
रात गहरी थी फिर भी सवेरा सा था
एक चेहरा के आँखों में ठहरा सा था
बे चिराग़ी से तेरी मेरे शहर दिल
वादी-ए-शे’र में कुछ इजाला सा था
मेरे चेहरे का सूरज उसे याद है
भूलता है पलक पर सितारा सा था
बात कीजिए तो खुलते थे जोहर बहुत
देखने में तो वो शख्स सादा सा था
सुलह जिस से रही मेरी ता-ज़िन्दगी
उस का सारे ज़माने से झगड़ा सा था
Conclusion
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